अतः पृच्छामि संसिद्धिं योगिनां परमं गुरुम् । पुरुषस्येह यत्कार्यं म्रियमाणस्य सर्वथा ।।३७ आप योगियोंके परम गुरु हैं, इसलिये मैं आपसे परम सिद्धिके स्वरूप और साधनके सम्बन्धमें प्रश्न कर रहा हूँ। जो पुरुष सर्वथा मरणासन्न है, उसको क्या करना चाहिये? ।।३७।।
अंत समय में क्या करें?
अंत समय में वह करें जो अगले दिन करना है, भविष्य में करना है,प्रलय समाप्त होने के बाद करना है। राजा सत्यव्रत ने अंत समय में जो किया वह अगले मन्वंतर में उसको करना पड़ा। सोते वक्त व्यक्ति जो सोचता है दूसरे दिन सुबह वही विचार शुरू होते हैं,इसलिए अंत समय में वह करें जो अगले दिन अगले जन्म में करना है।
राजा परीक्षित ने अंत समय में क्या किया?
अथो विहायेमममुं च लोकं विमर्शितौ हेयतया पुरस्तात् । कृष्णाङ्घ्रिसेवामधिमन्यमान उपाविशत् प्रायममर्त्यनद्याम् ।।५
या वै लसच्छ्रीतुलसीविमिश्र- कृष्णाङ्घ्रिरेण्वभ्यधिकाम्बुनेत्री । पुनाति लोकानुभयत्र सेशान् कस्तां न सेवेत मरिष्यमाणः ।।६
इति व्यवच्छिद्य स पाण्डवेयः प्रायोपवेशं प्रति विष्णुपद्याम् । दध्यौ मुकुन्दाङ्घ्रिमनन्यभावो मुनिव्रतो मुक्तसमस्तसङ्गः ।।७
वे इस लोक और परलोकके भोगोंको तो पहलेसे ही तुच्छ और त्याज्य समझते थे। अब उनका स्वरूपतः त्याग करके भगवान् श्रीकृष्णके चरणकमलोंकी सेवाको ही सर्वोपरि मानकर आमरण अनशनव्रत लेकर वे गंगातटपर बैठ गये ।।५।।
गंगाजीका जल भगवान् श्रीकृष्णके चरणकमलोंका वह पराग लेकर प्रवाहित होता है, जो श्रीमती तुलसीकी गन्धसे मिश्रित है। यही कारण है कि वे लोकपालोंके सहित ऊपर-नीचेके समस्त लोकोंको पवित्र करती हैं। कौन ऐसा मरणासन्न पुरुष होगा, जो उनका सेवन न करेगा? ।।६।।
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