सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

संदेश

मार्च, 2022 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

9ब्रह्माजीका भगवद्धामदर्शन और भगवान्‌के द्वारा उन्हें चतुःश्लोकी भागवतका उपदेश

 ब्रह्माजीका भगवद्धामदर्शन और भगवान्‌के द्वारा उन्हें चतुःश्लोकी भागवतका उपदेश  ब्रह्माजीने कहा—भगवन्! आप समस्त प्राणियोंके अन्तःकरणमें साक्षीरूपसे विराजमान रहते हैं⁠। आप अपने अप्रतिहत ज्ञानसे यह जानते ही हैं कि मैं क्या करना चाहता हूँ ⁠।⁠।⁠२४⁠।⁠। नाथ! आप कृपा करके मुझ याचककी यह माँग पूरी कीजिये कि मैं रूपरहित आपके सगुण और निर्गुण दोनों ही रूपोंको जान सकूँ ⁠।⁠।⁠२५⁠।⁠। आप मायाके स्वामी हैं, आपका संकल्प कभी व्यर्थ नहीं होता⁠। जैसे मकड़ी अपने मुँहसे जाला निकालकर उसमें क्रीड़ा करती है और फिर उसे अपनेमें लीन कर लेती है, वैसे ही आप अपनी मायाका आश्रय लेकर इस विविध-शक्तिसम्पन्न जगत्‌की उत्पत्ति, पालन और संहार करनेके लिये अपने-आपको ही अनेक रूपोंमें बना देते हैं और क्रीड़ा करते हैं⁠। इस प्रकार आप कैसे करते हैं—इस मर्मको मैं जान सकूँ, ऐसा ज्ञान आप मुझे दीजिये ⁠।⁠।⁠२६-२७⁠।⁠। आप मुझपर ऐसी कृपा कीजिये कि मैं सजग रहकर सावधानीसे आपकी आज्ञाका पालन कर सकूँ और सृष्टिकी रचना करते समय भी कर्तापन आदिके अभिमानसे बँध न जाऊँ ⁠।⁠।⁠२८⁠।⁠। प्रभो! आपने एक मित्रके समान हाथ पकड़कर मुझे अपना मित्र स्वीकार किया है⁠। अतः ज

राजाका सृष्टिविषयक प्रश्न

 सृष्टि-वर्णन  राजाका सृष्टिविषयक प्रश्न और शुकदेवजीका कथारम्भ  "जबतक अपनी साधनाओंको तथा अपने-आपको भगवान के चरणोंमें समर्पित नहीं कर देते, तब तक कल्याणकी प्राप्ति नहीं होती⁠।" यत्कीर्तनं यत्स्मरणं यदीक्षणं यद्वन्दनं यच्छ्रवणं यदर्हणम् ⁠। लोकस्य सद्यो विधुनोति कल्मषं तस्मै सुभद्रश्रवसे नमो नमः ⁠।⁠।⁠१५ विचक्षणा यच्चरणोपसादनात् सङ्ग व्युदस्योभयतोऽन्तरात्मनः ⁠। विन्दन्ति हि ब्रह्मगतिं गतक्लमा- स्तस्मै सुभद्रश्रवसे नमो नमः ⁠।⁠।⁠१६ विवेकी पुरुष जिनके चरणकमलोंकी शरण लेकर अपने हृदयसे इस लोक और परलोक की आसक्ति निकाल डालते हैं और बिना किसी परिश्रमके ही ब्रह्मपदको प्राप्त कर लेते हैं, उन मंगलमय कीर्तिवाले भगवान् श्रीकृष्णको अनेक बार नमस्कार है ⁠।⁠।⁠१६⁠।⁠। बड़े-बड़े तपस्वी, दानी, यशस्वी, मनस्वी, सदाचारी और मन्त्रवेत्ता जबतक अपनी साधनाओंको तथा अपने-आपको उनके चरणोंमें समर्पित नहीं कर देते, तबतक उन्हें कल्याणकी प्राप्ति नहीं होती⁠। जिनके प्रति आत्मसमर्पणकी ऐसी महिमा है, उन कल्याणमयी कीर्तिवाले भगवान्‌को बार-बार नमस्कार है ⁠।⁠।⁠१७⁠।⁠। किरात, हूण, आन्ध्र, पुलिन्द, पुल्कस, आभीर, कंक, यवन और खस आ

विराट्स्वरूपका वर्णन

 ध्यान-विधि और भगवान्‌के विराट्स्वरूपका वर्णन राजेन्द्र! जो गृहस्थ घरके काम-धंधोंमें उलझे हुए हैं, अपने स्वरूपको नहीं जानते, उनके लिये हजारों बातें कहने-सुनने एवं सोचने, करनेकी रहती हैं ⁠।⁠।⁠२⁠।⁠।  उनकी सारी उम्र यों ही बीत जाती है⁠। उनकी रात नींद या स्त्री-प्रसंगसे कटती है और दिन धनकी हाय-हाय या कुटुम्बियोंके भरण-पोषणमें समाप्त हो जाता है ⁠।⁠।⁠३⁠।⁠।  संसारमें जिन्हें अपना अत्यन्त घनिष्ठ सम्बन्धी कहा जाता है, वे शरीर, पुत्र, स्त्री आदि कुछ नहीं हैं, असत् हैं; परन्तु जीव उनके मोहमें ऐसा पागल-सा हो जाता है कि रात-दिन उनको मृत्युका ग्रास होते देखकर भी चेतता नहीं ⁠।⁠।⁠४⁠।⁠।  इसलिये परीक्षित्! जो अभय पदको प्राप्तकरना चाहता है, उसे तो सर्वात्मा, सर्वशक्तिमान् भगवान् श्रीकृष्णकी ही लीलाओंका श्रवण, कीर्तन और स्मरण करना चाहिये ⁠।⁠।⁠५⁠।⁠।  मनुष्य-जन्मका यही—इतना ही लाभ है कि चाहे जैसे हो—ज्ञानसे, भक्तिसे अथवा अपने धर्मकी निष्ठासे जीवनको ऐसा बना लिया जाय कि मृत्युके समय भगवान्‌की स्मृति अवश्य बनी रहे ⁠।⁠।⁠६⁠।⁠। परीक्षित्! जो निर्गुण स्वरूपमें स्थित हैं एवं विधि-निषेधकी मर्यादाको लाँघ चुके हैं, वे

2ध्यान विधि

 भगवान्‌के स्थूल और सूक्ष्मरूपोंकी धारणा तथा क्रममुक्ति और सद्योमुक्तिका वर्णन  कोई-कोई साधक अपने शरीरके भीतर हृदया-काशमें विराजमान भगवान्‌के प्रादेशमात्र स्वरूपकी धारणा करते हैं⁠। वे ऐसा ध्यान करते हैं कि भगवान्‌की चार भुजाओंमें शंख, चक्र, गदा और पद्म हैं ⁠।⁠।⁠८⁠।⁠। उनके मुखपर प्रसन्नता झलक रही है⁠। कमलके समान विशाल और कोमल नेत्र हैं⁠। कदम्बके पुष्पकी केसरके समान पीला वस्त्र धारण किये हुए हैं⁠। भुजाओंमें श्रेष्ठ रत्नोंसे जड़े हुए सोनेके बाजूबंद शोभायमान हैं⁠। सिरपर बड़ा ही सुन्दर मुकुट और कानोंमें कुण्डल हैं, जिनमें जड़े हुए बहुमूल्य रत्न जगमगा रहे हैं ⁠।⁠।⁠९⁠।⁠। उनके चरणकमल योगेश्वरोंके खिले हुए हृदयकमलकी कर्णिकापर विराजित हैं⁠। उनके हृदयपर श्रीवत्सका चिह्न—एक सुनहरी रेखा है⁠। गलेमें कौस्तुभमणि लटक रही है⁠। वक्षःस्थल कभी न कुम्हलानेवाली वनमालासे घिरा हुआ है ⁠।⁠।⁠१०⁠।⁠। वे कमरमें करधनी, अँगुलियोंमें बहुमूल्य अँगूठी, चरणोंमें नूपुर और हाथोंमें कंगन आदि आभूषण धारण किये हुए हैं⁠। उनके बालोंकी लटें बहुत चिकनी, निर्मल, घुँघराली और नीली हैं⁠। उनका मुखकमल मन्द-मन्द मुसकानसे खिल रहा है ⁠।⁠।⁠११⁠

कामनाओं के अनुसार उपा.

 कामनाओंके अनुसार विभिन्न देवताओंकी उपासना तथा भगवद्‌भक्तिके प्राधान्यका निरूपण  श्रीशुकदेवजीने कहा—परीक्षित्! तुमने मुझसे जो पूछा था कि मरते समय बुद्धिमान् मनुष्यको क्या करना चाहिये, उसका उत्तर मैंने तुम्हें दे दिया ⁠।⁠।⁠१⁠।⁠। जो ब्रह्मतेजका इच्छुक हो वह बृहस्पतिकी; जिसे इन्द्रियोंकी विशेष शक्तिकी कामना हो वह इन्द्रकी और जिसे सन्तानकी लालसा हो वह प्रजापतियोंकी उपासना करे ⁠।⁠।⁠२⁠।⁠। जिसे लक्ष्मी चाहिये वह मायादेवीकी, जिसे तेज चाहिये वह अग्निकी, जिसे धन चाहिये वह वसुओंकी और जिस प्रभावशाली पुरुषको वीरताकी चाह हो उसे रुद्रोंकी उपासना करनी चाहिये ⁠।⁠।⁠३⁠।⁠। जिसे बहुत अन्नप्राप्त करनेकी इच्छा हो वह अदितिका; जिसे स्वर्गकी कामना हो वह अदितिके पुत्र देवताओंका, जिसे राज्यकी अभिलाषा हो वह विश्वेदेवोंका और जो प्रजाको अपने अनुकूल बनानेकी इच्छा रखता हो उसे साध्य देवताओंका आराधन करना चाहिये ⁠।⁠।⁠४⁠।⁠।आयुकी इच्छासे अश्विनीकुमारोंका, पुष्टिकी इच्छासे पृथ्वीका और प्रतिष्ठाकी चाह हो तो लोक-माता पृथ्वी और द्यौ (आकाश)-का सेवन करना चाहिये ⁠।⁠।⁠५⁠।⁠। सौन्दर्यकी चाहसे गन्धर्वोंकी, पत्नीकी प्राप्तिके लिये उर्

1/19अंत समय क्या करें?

 अतः पृच्छामि संसिद्धिं योगिनां परमं गुरुम् ⁠।             पुरुषस्येह यत्कार्यं म्रियमाणस्य सर्वथा ⁠।⁠।⁠३७              आप योगियोंके परम गुरु हैं, इसलिये मैं आपसे परम सिद्धिके स्वरूप और साधनके सम्बन्धमें प्रश्न कर रहा हूँ⁠। जो पुरुष सर्वथा मरणासन्न है, उसको क्या करना चाहिये? ⁠।⁠।⁠३७⁠।⁠। अंत समय में क्या करें? अंत समय में वह करें जो अगले दिन करना है, भविष्य में करना है,प्रलय समाप्त होने के बाद करना है। राजा सत्यव्रत ने अंत समय में जो किया वह अगले मन्वंतर में उसको करना पड़ा। सोते वक्त व्यक्ति जो सोचता है दूसरे दिन सुबह वही विचार शुरू होते हैं,इसलिए अंत समय में वह करें जो अगले दिन अगले जन्म में करना है। राजा परीक्षित ने अंत समय में क्या किया? अथो विहायेमममुं च लोकं विमर्शितौ हेयतया पुरस्तात् ⁠। कृष्णाङ्घ्रिसेवामधिमन्यमान उपाविशत् प्रायममर्त्यनद्याम् ⁠।⁠।⁠५ या वै लसच्छ्रीतुलसीविमिश्र- कृष्णाङ्घ्रिरेण्वभ्यधिकाम्बुनेत्री ⁠। पुनाति लोकानुभयत्र सेशान् कस्तां न सेवेत मरिष्यमाणः ⁠।⁠।⁠६ इति व्यवच्छिद्य स पाण्डवेयः प्रायोपवेशं प्रति विष्णुपद्याम् ⁠। दध्यौ मुकुन्दाङ्घ्रिमनन्यभावो मुनिव्रतो मुक्तसमस

वेद स्तुति 3

ŚB 10.87.16 इति तव सूरयस्‍त्र्यधिपतेऽखिललोकमल-क्षपणकथामृताब्धिमवगाह्य तपांसि जहु: । किमुत पुन: स्वधामविधुताशयकालगुणा:परम भजन्ति ये पदमजस्रसुखानुभवम् ॥ १६ ॥  भगवान! लोग सत्व, रज,तम--इन तीन गुणों की माया से बने हुए अच्छे-बुरे भावो या अच्छी-बुरी क्रियाओं में उलझ जाया करते हैं, परंतु भगवान तो उस मायानटी के स्वामी,उसको नचाने वाले हैं। इसीलिए विचारशील पुरुष भगवानके लीलाकथाके अमृत सागर में गोते लगाते रहते हैं और इस प्रकार अपने सारे पाप-तापको धो - बहा देते हैं।क्यों न हो, भगवानकी लीला कथा सभी जीवो के मायामल को नष्ट करनेवाली जो है। पुरुषोत्तम! जिन महापुरुषों ने आत्मज्ञान के द्वारा अंतः करण के राग-द्वेष आदि और शरीर के काल कृत जरा-मरण आदि दोष मिटा दिए हैं और निरंतर भगवानके उस स्वरूप की अनुभूति में मग्न रहते हैं, जो अखंड आनंद स्वरूप है, उन्होंने अपने पाप-तापोंको सदा के लिए शांत, भस्म कर दिया है--इसके विषय में तो कहना ही क्या है। "सारे  वेद भगवानके सदगुणोंका वर्णन करते हैं।इसलिए संसारके सभी विद्वान भगवानके मंगलमय कल्याणकारी गुणोंके श्रवण स्मरण आदि के द्वारा भगवानसे ही प्रेम करते हैं, और भ

कृतिका

 आज कृतिका नक्षत्र है, १९. अंत समय में क्या करें?   द्वितीय स्कन्ध  ध्यान-विधि और भगवान्‌के विराट्स्वरूपका वर्णनभगवान्‌के स्थूल और सूक्ष्मरूपोंकी धारणा तथा क्रममुक्ति और सद्योमुक्तिका वर्णन   कुंडलिनी जागरण ३-कामनाओंके अनुसार विभिन्न देवताओंकी उपासना तथा भगवद्‌भक्तिके प्राधान्यका निरूपण  ४-राजाका सृष्टिविषयक प्रश्न और शुकदेवजीका कथारम्भ  ५- सृष्टि-वर्णन   ६-विराट्स्वरूपकी विभूतियोंका वर्णन  ७-भगवान्‌के लीलावतारोंकी कथा ८- राजा परीक्षित्‌के विविध प्रश्न  ९-ब्रह्माजीका भगवद्धामदर्शन और भगवान्‌के द्वारा उन्हें चतुःश्लोकी चतुःश्लोकी भागवत भागवतका उपदेश  १०- भागवतके दस लक्षण  तृतीय स्कन्ध  १- उद्धव और विदुरकी भेंट