सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

लीलावतारोकी कथा

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

9ब्रह्माजीका भगवद्धामदर्शन और भगवान्‌के द्वारा उन्हें चतुःश्लोकी भागवतका उपदेश

 ब्रह्माजीका भगवद्धामदर्शन और भगवान्‌के द्वारा उन्हें चतुःश्लोकी भागवतका उपदेश  ब्रह्माजीने कहा—भगवन्! आप समस्त प्राणियोंके अन्तःकरणमें साक्षीरूपसे विराजमान रहते हैं⁠। आप अपने अप्रतिहत ज्ञानसे यह जानते ही हैं कि मैं क्या करना चाहता हूँ ⁠।⁠।⁠२४⁠।⁠। नाथ! आप कृपा करके मुझ याचककी यह माँग पूरी कीजिये कि मैं रूपरहित आपके सगुण और निर्गुण दोनों ही रूपोंको जान सकूँ ⁠।⁠।⁠२५⁠।⁠। आप मायाके स्वामी हैं, आपका संकल्प कभी व्यर्थ नहीं होता⁠। जैसे मकड़ी अपने मुँहसे जाला निकालकर उसमें क्रीड़ा करती है और फिर उसे अपनेमें लीन कर लेती है, वैसे ही आप अपनी मायाका आश्रय लेकर इस विविध-शक्तिसम्पन्न जगत्‌की उत्पत्ति, पालन और संहार करनेके लिये अपने-आपको ही अनेक रूपोंमें बना देते हैं और क्रीड़ा करते हैं⁠। इस प्रकार आप कैसे करते हैं—इस मर्मको मैं जान सकूँ, ऐसा ज्ञान आप मुझे दीजिये ⁠।⁠।⁠२६-२७⁠।⁠। आप मुझपर ऐसी कृपा कीजिये कि मैं सजग रहकर सावधानीसे आपकी आज्ञाका पालन कर सकूँ और सृष्टिकी रचना करते समय भी कर्तापन आदिके अभिमानसे बँध न जाऊँ ⁠।⁠।⁠२८⁠।⁠। प्रभो! आपने एक मित्रके समान हाथ पकड़कर मुझे अपना मित्र स्वीकार किया ह...