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1/3-उद्धव और विदुरकी भेंट

 -उद्धव और विदुरकी भेंट

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विराट्स्वरूपका वर्णन

 ध्यान-विधि और भगवान्‌के विराट्स्वरूपका वर्णन राजेन्द्र! जो गृहस्थ घरके काम-धंधोंमें उलझे हुए हैं, अपने स्वरूपको नहीं जानते, उनके लिये हजारों बातें कहने-सुनने एवं सोचने, करनेकी रहती हैं ⁠।⁠।⁠२⁠।⁠।  उनकी सारी उम्र यों ही बीत जाती है⁠। उनकी रात नींद या स्त्री-प्रसंगसे कटती है और दिन धनकी हाय-हाय या कुटुम्बियोंके भरण-पोषणमें समाप्त हो जाता है ⁠।⁠।⁠३⁠।⁠।  संसारमें जिन्हें अपना अत्यन्त घनिष्ठ सम्बन्धी कहा जाता है, वे शरीर, पुत्र, स्त्री आदि कुछ नहीं हैं, असत् हैं; परन्तु जीव उनके मोहमें ऐसा पागल-सा हो जाता है कि रात-दिन उनको मृत्युका ग्रास होते देखकर भी चेतता नहीं ⁠।⁠।⁠४⁠।⁠।  इसलिये परीक्षित्! जो अभय पदको प्राप्तकरना चाहता है, उसे तो सर्वात्मा, सर्वशक्तिमान् भगवान् श्रीकृष्णकी ही लीलाओंका श्रवण, कीर्तन और स्मरण करना चाहिये ⁠।⁠।⁠५⁠।⁠।  मनुष्य-जन्मका यही—इतना ही लाभ है कि चाहे जैसे हो—ज्ञानसे, भक्तिसे अथवा अपने धर्मकी निष्ठासे जीवनको ऐसा बना लिया जाय कि मृत्युके समय भगवान्‌की स्मृति अवश्य बनी रहे ⁠।⁠।⁠६⁠।⁠। परीक्षित्! जो निर्गुण स्वरूपमें स्थित हैं एवं विधि-निषेधकी मर्...