सृष्टि-वर्णन
राजाका सृष्टिविषयक प्रश्न और शुकदेवजीका कथारम्भ
"जबतक अपनी साधनाओंको तथा अपने-आपको भगवान के चरणोंमें समर्पित नहीं कर देते, तब तक कल्याणकी प्राप्ति नहीं होती।"
यत्कीर्तनं यत्स्मरणं यदीक्षणं यद्वन्दनं यच्छ्रवणं यदर्हणम् । लोकस्य सद्यो विधुनोति कल्मषं तस्मै सुभद्रश्रवसे नमो नमः ।।१५
विचक्षणा यच्चरणोपसादनात् सङ्ग व्युदस्योभयतोऽन्तरात्मनः । विन्दन्ति हि ब्रह्मगतिं गतक्लमा- स्तस्मै सुभद्रश्रवसे नमो नमः ।।१६
विवेकी पुरुष जिनके चरणकमलोंकी शरण लेकर अपने हृदयसे इस लोक और परलोक की आसक्ति निकाल डालते हैं और बिना किसी परिश्रमके ही ब्रह्मपदको प्राप्त कर लेते हैं, उन मंगलमय कीर्तिवाले भगवान् श्रीकृष्णको अनेक बार नमस्कार है ।।१६।।
बड़े-बड़े तपस्वी, दानी, यशस्वी, मनस्वी, सदाचारी और मन्त्रवेत्ता जबतक अपनी साधनाओंको तथा अपने-आपको उनके चरणोंमें समर्पित नहीं कर देते, तबतक उन्हें कल्याणकी प्राप्ति नहीं होती। जिनके प्रति आत्मसमर्पणकी ऐसी महिमा है, उन कल्याणमयी कीर्तिवाले भगवान्को बार-बार नमस्कार है ।।१७।।
किरात, हूण, आन्ध्र, पुलिन्द, पुल्कस, आभीर, कंक, यवन और खस आदि नीच जातियाँ तथा दूसरे पापी जिनके शरणागत भक्तोंकी शरण ग्रहण करनेसे ही पवित्र हो जाते हैं, उन सर्वशक्तिमान् भगवान्को बार-बार नमस्कार है ।।१८।।
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