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कृतिका

 आज कृतिका नक्षत्र है,


१९.अंत समय में क्या करें? 

द्वितीय स्कन्ध 

ध्यान-विधि और भगवान्‌के विराट्स्वरूपका वर्णनभगवान्‌के स्थूल और सूक्ष्मरूपोंकी धारणा तथा क्रममुक्ति और सद्योमुक्तिका वर्णन  कुंडलिनी जागरण

३-कामनाओंके अनुसार विभिन्न देवताओंकी उपासना तथा भगवद्‌भक्तिके प्राधान्यका निरूपण 

४-राजाका सृष्टिविषयक प्रश्न और शुकदेवजीका कथारम्भ 

५-सृष्टि-वर्णन 

६-विराट्स्वरूपकी विभूतियोंका वर्णन 

७-भगवान्‌के लीलावतारोंकी कथा

८-राजा परीक्षित्‌के विविध प्रश्न 

९-ब्रह्माजीका भगवद्धामदर्शन और भगवान्‌के द्वारा उन्हें चतुःश्लोकीचतुःश्लोकी भागवत भागवतका उपदेश 

१०-भागवतके दस लक्षण 

तृतीय स्कन्ध 

१-उद्धव और विदुरकी भेंट


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विराट्स्वरूपका वर्णन

 ध्यान-विधि और भगवान्‌के विराट्स्वरूपका वर्णन राजेन्द्र! जो गृहस्थ घरके काम-धंधोंमें उलझे हुए हैं, अपने स्वरूपको नहीं जानते, उनके लिये हजारों बातें कहने-सुनने एवं सोचने, करनेकी रहती हैं ⁠।⁠।⁠२⁠।⁠।  उनकी सारी उम्र यों ही बीत जाती है⁠। उनकी रात नींद या स्त्री-प्रसंगसे कटती है और दिन धनकी हाय-हाय या कुटुम्बियोंके भरण-पोषणमें समाप्त हो जाता है ⁠।⁠।⁠३⁠।⁠।  संसारमें जिन्हें अपना अत्यन्त घनिष्ठ सम्बन्धी कहा जाता है, वे शरीर, पुत्र, स्त्री आदि कुछ नहीं हैं, असत् हैं; परन्तु जीव उनके मोहमें ऐसा पागल-सा हो जाता है कि रात-दिन उनको मृत्युका ग्रास होते देखकर भी चेतता नहीं ⁠।⁠।⁠४⁠।⁠।  इसलिये परीक्षित्! जो अभय पदको प्राप्तकरना चाहता है, उसे तो सर्वात्मा, सर्वशक्तिमान् भगवान् श्रीकृष्णकी ही लीलाओंका श्रवण, कीर्तन और स्मरण करना चाहिये ⁠।⁠।⁠५⁠।⁠।  मनुष्य-जन्मका यही—इतना ही लाभ है कि चाहे जैसे हो—ज्ञानसे, भक्तिसे अथवा अपने धर्मकी निष्ठासे जीवनको ऐसा बना लिया जाय कि मृत्युके समय भगवान्‌की स्मृति अवश्य बनी रहे ⁠।⁠।⁠६⁠।⁠। परीक्षित्! जो निर्गुण स्वरूपमें स्थित हैं एवं विधि-निषेधकी मर्...